हादसों की ज़द में है तो क्या मुस्कराना छोड़ दे।
जलजलों के खौफ से क्या घर बनाना छोड़ दे।
मुझे वो मार कर खुश है की सारा राज उस पर है।
यक़ीनन कल है मेरा आज बेशक आज उस पर है।
उसे ज़िद थी झुकाओ सर तभी दाश्तार बख्शूँगा।
मई अपना सर बचा लाया , महल और ताज उस पर है।
न पाने की खुसी है कुछ न खोने का ही कुछ ग़म है।
ये दौलत और शोहरत सिर्फ कुछ जख्मो का मरहम है।
अज़ाब सी कशमकश है रोज़ ज़ीने रोज़ मरने में।
मुकम्मल ज़िंदगी तो है मगर पूरी से कुछ कम है।
तुम्ही पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता।
कई जन्मो से बंदी है बगावत क्यों नहीं करता।
कभी तुमसे थी जो वो भी शिकायत है ज़माने से।
मेरी तारीफ करता है मुहब्बत क्यों नहीं करता।
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है।
मगर धरती की बेचैनी को बस बदल समझता है।
तू मुझसे दूर कैसी है मैं तुझसे दूर कैसा हूँ।
ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है।

हज़ारो रात का जगा हूँ सोना चाहता हूँ अब
तुझे मिलके ये पलके भिगोना चाहता हूँ अब
बहुत ढूँढा है तुझको खुद में इतना थक गया हूँ मैं।
की खुद को सौपकर तुझको खोना चाहता हूँ मैं।
मैं भाव सूची उन भावों की जो बिके सदा ही बिन तौले।
तन्हाई हूँ उस खत की जो पढ़ा गया है बिन खोले।
हर आंसू को हर पथ्थर तक पहुंचाने की लाचार हूक।
मैं सहज अर्थ उन शब्दों का जो सुने गए हैं बिन बोले।
जो कभी नहीं बरसा खुल कर हर उस बदल का पानी हूँ
लव कुश की पीर बिना गाई सीता की राम कहानी हूँ।
जिनके सपनो के ताजमहल बनने से पहले टूट गए।
जिन हाथों में दो हाथ कभी आने से पहले छूट गए।
धरती पर जिनके खोने और पाने की अज़ाब कहानी है।
किस्मत की देवी मान गयी पर प्रणय देवता रूठ गए।
मैं मैली चादर वाले उस कबीरा की अमृत बानी हूँ
लव कुश की पीर बिना गाई सीता की राम कहानी हूँ।
कुछ कहते है मैं सीखा हूँ अपने ज़ख्मो को खुद सीकर।
कुछ जान गए मैं हँसता हूँ भीतर भीतर आंसू पीकर।
कुछ कहते हैं मैं हूँ विरोध से उपजी एक खुद्दार विजय
कुछ कहते है मैं रचता हूँ खुद में मरकर खुद में जीकर।
लेकिन मैं हर चतुराई की सोची समझी नादानी हूँ
लव कुश की पीर बिना गाई सीता की राम कहानी हूँ।
प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाए।
ओढ़नी इस तरह उलझे की कफ़न हो जाए।
घर के अहसास जो बाज़ार की शर्तों में ढलें।
अज़नबी लोग जो हमराह बनके साथ चलें।
लवों से आसमा तक सबकी दुआ चुक जाए।
भीड़ का शोर जो कानो के पास रुक जाए
सितम की मारी हुई वक़्त की इन आँखों में
नमी हो लाख मगर फिर मुस्कुरायेंगे
अँधेरे वक़्त में भी गीत गाये जायेंगे।
लोग कहते रहें इस रात की सुबह ही नहीं।
कहदे सूरज के रौशनी का तज़ुर्बा ही नहीं।
वो लड़ाई को भले आर पार ले जाएँ
लोहा ले जाएँ वो लोहे की धार ले जाएँ।
जिसकी चौखट से तराजू तक उन पर गिरवी
उस अदालत में हमें बार बार ले जाएँ
हम अगर गुनगुना भी देंगे तो बो सब के सब
हमको कागज़ पे हराके भी हार जाएंगे।
अँधेरे वक़्त में गीत गाये जाएंगे।
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